Sheetala Ashtami 2021: आज है शीतला अष्टमी, जानें क्यों लगाया जाता है माता को बासी खाने का भोग
Vidya Gyan Desk: चैत्र मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी को शीतला अष्टमी (Sheetala Ashtami 2021) का पर्व मनाया जाता है। शीतला अष्टमी (Sheetla Ashtami 2021) हिन्दुओं का त्योहार है। यह त्योहार होली के बाद आता है। इसमें शीतला माता (Sheetala Mata) का व्रत और पूजन किया जाता है।
कृष्ण पक्ष की इस शीतला अष्टमी (Sheetala Ashtami 2021) को बासौड़ा (Basoda) और शीतलाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि शीतला अष्टमी के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता। इसलिए इस दिन बासी खाना खाया जाता है और शीतला माता को भी बासी खाने का भोग लगाया जाता है। साथ ही ये अष्टमी ऋतु परिवर्तन का संकेत देती है। इस बदलाव से बचने के लिए साफ-सफाई का पूर्ण ध्यान रखना होता है। इस बार शीतला अष्टमी 4 अप्रैल को है।
शीतला अष्टमी 2021 तिथि और शुभ मुहूर्त (Sheetla Ashtami 2021 Shubh Muhurat)
शीतला अष्टमी रविवार 4 अप्रैल को
- शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त – सुबह 06:08 से शाम 06:41 तक
- अवधि – 12 घंटे 33 मिनट
- अष्टमी तिथि प्रारम्भ – अप्रैल 04, 2021 को सुबह 04:12 बजे
- अष्टमी तिथि समाप्त – अप्रैल 05, 2021 को देर रात 02:59 बजे
शीतला माता का रूप
शीतला माता को चेचक जैसे रोग की देवी माना जाता है। यह हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाड़ू) और नीम के पत्ते धारण किए होती हैं। गर्दभ की सवारी किए यह अभय मुद्रा में विराजमान हैं।
चावल का प्रसाद
शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता की पूजा के समय उन्हें खास मीठे चावलों का भोग चढ़ाया जाता है। ये चावल गुड़ या गन्ने के रस से बनाए जाते हैं। इन्हें सप्तमी की रात को बनाया जाता है। इसी प्रसाद को घर में सभी सदस्यों को खिलाया जाता है। शीतला अष्टमी के दिन घर में ताज़ा खाना नहीं बनता।
शीतला अष्टमी की पूजा विधि
- सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर नहाएं।
- पूजा की थाली तैयार करें। थाली में दही, पुआ, रोटी, बाजरा, सप्तमी को बने मीठे चावल, नमक पारे और मठरी रखें।
- दूसरी थाली में आटे से बना दीपक, रोली, वस्त्र, अक्षत, हल्दी, मोली, होली वाली बड़कुले की माला, सिक्के और मेहंदी रखें।
- दोनों थाली के साथ में लोटे में ठंडा पानी रखें।
- शीतला माता की पूजा करें और दीपक को बिना जलाए ही मंदिर में रखें।
- माता को सभी चीज़े चढ़ाने के बाद खुद और घर से सभी सदस्यों को हल्दी का टीका लगाएं।
- अब हाथ जोड़कर माता से प्रार्थना करें और ‘हे माता, मान लेना और शीली ठंडी रहना’ कहें।
- घर में पूजा करने के बाद अब मंदिर में पूजा करें।
- मंदिर में पहले माता को जल चढ़ाएं। रोली और हल्दी के टीका करें।
- मेहंदी, मोली और वस्त्र अर्पित करें।
- बड़कुले की माला व आटे के दीपक को बिना जलाए अर्पित करें।
- अंत में वापस जल चढ़ाएं और थोड़ा जल बचाएं। इसे घर के सभी सदस्य आंखों पर लगाएं और थोड़ा जल घर के हर हिस्से में छिड़कें।
- इसके बाद जहां होलिका दहन हुआ था वहां पूजा करें। थोड़ा जल चढ़ाएं और पूजन सामग्री चढ़ाएं।
- घर आने के बाद पानी रखने की जगह पर पूजा करें।
- अगर पूजन सामग्री बच जाए तो गाय या ब्राह्मण को दे दें।
शीतला अष्टमी का महत्व
ऐसी मान्यता है कि शीतला अष्टमी के दिन से ही मौसम तेजी से गर्म होने लगता है (Summer Season)। शीतला माता के स्वरूप को शीतलता प्रदान करने वाला कहा गया है। गर्म होते इस मौसम में मौसमी बीमारियां भी होती हैं, जिन्हें शांत करने के लिए देवी की पूजा की जाती है।
इस त्योहार का उद्देश्य साफ-सफाई (Cleaniness) और सात्विकता को बढ़ावा देना है ताकि बीमारियों से बचा जा सके। आरोग्य भरा जीवन प्राप्त करने के लिए लोग इस दिन माता शीतला की पूजा करते हैं। पूजा के दौरान कथा पढ़ने का भी विधान है। आइए जानते हैं क्या है शीतला माता के अनुष्ठान से जुड़ी कथा।
शीतला माता की पौराणिक कथा (Sheetla Mata Prachin Katha)
एक गांव में ब्राह्मण दंपति रहते थे। दंपति के दो बेटे और दो बहुएं थीं। बहुओं को लंबे समय के बाद बेटे हुए। इतने में शीतला अष्टमी का पर्व आया। घर में पर्व के अनुसार ठंडा भोजन तैयार किया गया। दोनों बहुओं के मन में विचार आया कि यदि हम ठंडा बासी भोजन लेंगी तो बीमार होंगी, बेटे भी अभी छोटे हैं। इस विचार के कारण दोनों बहुओं ने चोरी छिपे पशुओं के दाने तैयार करने के बर्तन में गुप-चुप दो बाटी तैयार कर लीं। सास-बहू शीतला की पूजा करके आई और शीतला माता की कथा सुनी।
बाद में सास शीतला माता के भजन करने बैठ गई लेकिन दोनों बहुएं बच्चे रोने का बहाना बनाकर घर आ गईं। दाने के बरतन से गरम-गरम रोटला निकाला, चूरमा किया और पेटभर कर खाना खाया। सास ने घर आने पर बहुओं से भोजन करने के लिए कहा। बहुएं ठंडा बासी भोजन करने का दिखावा करके घर के काम में लग गई। सास ने कहा, ‘बच्चे कब के सोए हुए हैं, उन्हे जगाकर भोजन करा लो।’
बहुएं जैसे ही अपने बेंटों को जगाने गईं तो उन्हें मृतप्रायः पाया। ऐसा बहुओं की करतूतों के फलस्वरुप शीतला माता के प्रकोप के कारण हुआ था। बहुएं विवश हो गईं और सास ने घटना जानने के बाद बहुओं को खूब डांटा। सास बोली कि तुम दोनों ने शीतला माता की अवहेलना की है इसलिए घर से निकल जाओ और बेटों को जिन्दा-स्वस्थ लेकर ही घर में पुन: पैर रखना।
अपने मृत बेटों को टोकरे में सुलाकर दोनों बहुएं घर से निकलीं। जाते-जाते रास्ते में एक जीर्ण वृक्ष आया। यह खेजडी का वृक्ष था। इसके नीचे ओरी शीतला दोनों बहनें बैठी थीं। दोनों के बालों में विपुल प्रमाण में जूं भी थीं। बहुओं को थकान हो गई थी और इसलिए दोनों बहुएं ओरी और शीतला के पास आकर बैठ गई। उन दोनों ने शीतला-ओरी के बालों से खूब सारी जूं निकाली। जूंओं का नाश होने से ओरी और शीतला ने अपने मस्तक में शीतलता का अनुभव किया और कहा, ‘तुम दोनों ने हमारे मस्तक को शीतल किया है, वैसे ही तुम्हें पेट की शांति मिले।’
दोनों बहुएं एक साथ बोली कि पेट का दिया हुआ ही लेकर हम मारी-मारी भटक रही हैं, परंतु शीतला माता के दर्शन हुए ही नहीं। शीतला माता ने कहा कि तुम दोनों पापिनी हो, दुष्ट हो, दुराचारिनी हो, तुम्हारा तो मुंह देखने भी योग्य नहीं है। शीतला अष्टमी के दिन ठंडा भोजन करने के बदले तुम दोनों ने गरम भोजन कर लिया था।
यह सुनते ही बहुओं ने शीतला माताजी को पहचान लिया। देवरानी-जेठानी ने दोनों ने माताओं का वंदन किया। गिड़गिड़ाते हुए कहा कि हम तो भोली-भाली हैं और अनजाने में हमने ताजा गरम खाना खा लिया था। आपके प्रभाव को हम जानती नहीं थीं। आप हम दोनों को क्षमा करें। हम पुनः ऐसा दुष्कृत्य कभी नहीं करेंगे।
उनके पश्चाताप भरे वचनों को सुनकर माताएं प्रसन्न हुईं। शीतला माता ने मृतक बालकों को जीवित कर दिया। बहुएं तब बच्चों के साथ लेकर आनंद से पुनः गांव लौट आईं। गांव के लोगों ने जाना कि दोनों बहुओं को शीतला माता के साक्षात दर्शन हुए। दोनों का धूम-धाम से स्वागत करके गांव में प्रवेश करवाया गया। बहुओं ने कहा,’हम गांव में शीतला माता के मंदिर का निर्माण करवाएंगी।’
चैत्र मास में शीतला अष्टमी के दिन मात्र ठंडा खाना ही खाएंगी। शीतला माता ने बहुओं पर जैसी अपनी दृष्टि की वैसी कृपा सब पर हो। श्री शीतला मां सदा हमें शांति, शीतलता तथा आरोग्य प्रदान करें।
शीतले त्वं जगन्माता
शीतले त्वं जगत् पिता।
शीतले त्वं जगद्धात्री
शीतलायै नमो नमः।।
शीतला अष्टमी पर करें ये उपाय
- शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता की पूजा करने के बाद नीम के पेड़ में जल दें और पेड़ की सात बार परिक्रमा करें। ऐसा करने से आपके घर की निगेटिव एनर्जी दूर होती है।
- बीमारियों से अपने परिवार की रक्षा करने के लिए शीतला अष्टमी के दिन माता को हल्दी अर्पित करें। पूजा के बाद इस हल्दी को परिवार के सभी सदस्यों को लगाएं।
- शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता को जल अर्पित करें और उसी जल को घर की सभी दिशाओं में छिड़कें। ऐसा करने से परिवार में पॉजिटिव एनर्जी और सुख-शांति आती है।